और जूते चुर गये
और जूते चुर गये
ये वर्ष 95 की बात है, दिसंबर का महीना था, ठंड भी खूब थी, दिल्ली में निजामुद्दीन स्थित स्काउट मैदान में सहजयोग का एक बड़ा आयोजन था, जिसमें हमारा जाना हुआ I उस बार संयोग से मैं अकेला ही वहाँ गया था, मुरादाबाद से एक दो अन्य भाई भी गये थे लेकिन हमें पहले से पता नहीं चल सका था İ
जूता चप्पल चोर ऐसे आयोजनों में सूंघ सांघकर पहुँच ही जाते हैं, और संभवत: उन्हें मेरे जूते और चप्पलें अधिक पसंद आते होंगे, या उनके पाँव में मेरी ही चप्पल फिट आती होगी जिस कारण मेरी चप्पल अधिकतर चुर जाती थी I उस दिन ठंड के कारण मैं जूते पहनकर गया था, जूते लगभग नये ही थे, मैंने जूता चोरी से बचने के लिये एक तोड़ निकाला था जिसके अनुसार एक जूता पंडाल के एक खंबे के पास उतारा और दूसरा थोड़ी दूर पर दूसरे खंबे के पास उतारा, ताकि एक साथ रखे होने पर चुर न जायें I ये राय भी हमें जूता चोरी से प्रताड़ित एक विशेषज्ञ ने ही दी थी I अंदर पंडाल में बहुत भीड़ थी जिस कारण बाहर भी जूते चप्पलों की बहुतायत थी İ
कार्यक्रम रात्रि लगभग 11 बजे तक चला, कार्यक्रम के बाद जब बाहर आये तो हमारे जूते नदारद थे I निश्चित ही जूताचोर हमारी मानसिकता से अवगत था और उसने अलग अलग स्थान पर रखे जूते भी तलाश लिये थे I
रात्रि के बारह बज चुके थे, लगभग आधा पौना घंटा इस इंतजार में गुजरा कि जूतों की भीड़ कम हो और शायद फिर शेष बचे जूतों में कहीं हमारे भटके हुए जूते मिल जायें, लेकिन थोड़ी देर में हमें समझ आ गया था कि कुंभ के मेले में बिछुड़े जुड़वां भाई तो मिल सकते हैं, बिछड़े हुए जूते कभी नहीं मिलते İ खैर साहब, नंगे पैर ही वापस चलने लगे, दिसंबर की रात में दिल्ली की काली काली बजरी वाली सड़क पर नंगे पाँव चलना बड़ी ठंडक दे रहा थाİ
लगभग आधा किलोमीटर चलकर बाहर मुख्य सड़क पर आये और संयोगवश आई एस बी टी के लिये बस तुरंत मिल गयी I कंडक्टर ने गौर किया हो या न किया हो, हमें बड़ा अजीब लग रहा था, कि ये क्या सोच रहा होगा, नंगे पैर कहीं से भागा हुआ तो नहीं है I आइ एस बी टी से तुरंत मुरादाबाद की बस भी मिल गयी, उसमें भी इसी मनोदशा में बैठे, मुरादाबाद स्टेशन पर उतर कर रिक्शा पकड़कर लगभग 5.00 बजे घर आये और चैन की सांस ली I
दिसंबर की ठंडी रात में दिल्ली से मुरादाबाद तक के सफर की ये रात हमें सदैव के लिये स्मरणीय बन गयी I
उस दिन के बाद से हमने जूतों की फिक्र करना छोड़ दिया, यह सोचकर कि जूते तो चुर ही जायेंगे, लेकिन यह भी सच्चाई है कि उस घटना के बाद से फिर कभी हमारे जूते नहीं चुरे İ
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG – 69,
रामगंगा बिहार,
मुरादाबाद I