#और चमत्कार हो गया !
#और चमत्कार हो गया ! 🔥
लोकसभाचुनावों के बीच कई बार यह उद्घोष गुंजित हुआ कि “अबकी बार तमिलनाडु, बंगाल और पंजाब में चमत्कार होगा”। और हुआ क्या?
आइए, विश्लेषण करें। पहले बात तमिलनाडु की।
देश भर में संत जेवियर के नाम से शिक्षण संस्थाएं कार्यरत हैं। इन संस्थाओं में पढ़ने वाले बच्चों के मातापिता की ग्रीवा गर्व से तनी रहती है। लेकिन, सरकार अथवा जननेताओं का दायित्व है कि वे देश को बताएं कि यह जेवियर वही नराधम है जिसने गोआ में ईसाइयत स्थापित करने के लिए मानवता को लज्जित किया लांछित किया कलंकित किया।
और, भारत में सर्वप्रथम अलगाववाद की चिंगारी तमिलनाडु में सुलगाने वाले पेरियार की वास्तविकता उजागर करने और उसके द्वारा बोया गया उत्तर भारत विरोध, हिंदू विरोध का बीजनाश करने का दायित्व भी जननेताओं अथवा राष्ट्रवादी सरकार का ही है।
यह कार्य इतना सरल भी नहीं है। इसके लिए समय भी चाहिए और अन्नामलाई जैसा साहस भी चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि वीर अन्नामलाई को और अधिक शक्तिशाली बनाया जाए। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को चाहिए कि उन्हें राज्यसभा में लेकर जाएं।
पंजाबी भाषा में एक कहावत है “रब नेड़े कि घस्सुन”, इसे हिंदी में यों कहेंगे कि “प्रभु निकट कि घूंसा”। बंगाल के लोग जान गए हैं कि घूंसा सामने दिख रहा है और प्रभु घटघटवासी होने पर भी अदृश्य हैं। पिछले चुनाव के उपरांत जिन लोगों ने भाजपा को वोट दिया उन्हें मारापीटा गया, उनके घर जलाकर फूंक दिए गए, बहुतेरे जान गंवा बैठे और लाखों लोग समीपवर्ती प्रदेश में शरणार्थी हुए। लेकिन, आप अर्थात भाजपा अर्थात केंद्र सरकार उन्हें पिटते मिटते देखती रही। परिणामतः भाजपा के नाम से जीतकर आए हुए विधायक सांसद घूंसा सामने दिखने पर वापस लौट गए। तब?
जब बंगाली बंधुओं ने यह जान लिया कि आप अहिंसा और कायरता में अंतर नहीं जानते तब वे अबकी बार पिटने और मिटने का साहस न जुटा सके। वरना संदेशखाली जैसा घृणित कांड ही पर्याप्त था वहां की सरकार को अपदस्थ करने का। परंतु, आपके सामने तो उससे पहले भी संविधान की अवमानना करने के कई कारण थे कि वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता। उन कारणों में एक था धर्म के आधार पर आरक्षण।
अब, आप नैतिकता की पीपनी बजाएंगे और कहेंगे कि अदालत उन्हें तुरंत पुनर्स्थापित कर देती। लेकिन, उसका समाधान भी पंजाबी भाषा की एक कहावत में है कि “दुकानदारी नर्मी दी, हुकूमत गर्मी दी”। आपने अदालत को फटकार क्यों नहीं लगायी कि महिला वकीलों को जज बनाने का विशेषज्ञ अदालतपरिसर में प्रतिबंधित क्यों नहीं है? और, कानून को उठाकर ताक पर रखने वाले जज चुनावप्रचार के लिए जमानत देने के बाद भी उस कुर्सी पर किस अधिकार से बैठे हैं?
इस पर भी आप साहस न जुटा पा रहे हों तो भारत के मित्र इज़राइल से सीख लें। संयुक्तराष्ट्र ने कह दिया कि इज़राइल नरसंहार रोके। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने इज़राइल को नरसंहार का अपराधी ठहरा दिया। परंतु, उसने स्पष्ट चेतावनी दी कि सात अक्टूबर के दिन हमारे घरों में घुसकर निरपराधों की हत्या करने वाले, अबोध शिशुओं के हत्यारे, महिलाओं के साथ बलात्कार करने वाले, नग्न महिलाओं की परेड निकालने वाले ही अपराधी नहीं थे, जब वो यह सब कुकर्म कर रहे थे तब यह बाईस लाख लोग, बच्चों और महिलाओं सहित प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे, नाच रहे थे। इनको गाज़ा छोड़ना होगा अथवा मरना होगा।
यह संभव है कि इज़राइल पर परमाणु बम अथवा किसी और मारक अस्त्र का प्रयोग किया जाए और वो धरती जनशून्य हो जाए। परंतु, उन्होंने सारे संसार को बता दिया है कि वे मानवद्रोही पशुता का बीजनाश किए बिना रुकने वाले नहीं हैं।
इज़राइल से नहीं सीखने का मन हो तो तुलसी बाबा की ही सुन लो, “समरथ को नहीं दोष गुसाईं”।
इन पंक्तियों का लेखक क्योंकि पंजाबीभाषी है इसलिए एक कहावत और सुन लें, “भुंज्जे डिग्गे बेरां दा अजे कुज्झ नहीं विगड़या” अर्थात “धरती पर गिरे बेरों का अभी कुछ नहीं बिगड़ा”। इस बार भी भाजपा को वोट देने वालों को सबक सिखाया जा रहा है। धारा “सात सौ बारह” तुरंत ठोकिए। क्योंकि लातों के भूत बातों से कहां समझते हैं।
देश में इस समय सबसे विकट स्थिति पंजाब की है। सिक्खबहुल प्रदेश में इस समय सिक्ख अल्पसंख्यक हो चुके। लगभग साठ वर्ष पूर्व जब सिर पर मानवमल ढोनेवालों ने हड़ताल कर दी तब पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरों ने यही कार्य करने वाले लोगों को बिहार से बुलाया। हड़ताल समाप्त हो गई। परंतु, बिहारी वापस नहीं लौटे। पंजाब की वर्तमान समृद्धि में बिहारियों का योगदान अमूल्य है।
राजनीति की विवशता ने पंजाब से हिंदीभाषी हिंदुओं को हरियाणा देकर परे चाहे धकेल दिया परंतु, बचेखुचे पंजाबी सूबे में आज भी ब्यालीस-तैंतालीस प्रतिशत हिंदू हैं। शेष रहे सिक्खों में पंजाब की कुल जनसंख्या का पैंतीस प्रतिशत दलित समाज से हैं। इस प्रकार जट्ट सिक्ख पच्चीस प्रतिशत भी नहीं ठहरते।
जनसंख्या का यह विचलन एक दिन में नहीं हुआ। पहले गांवों में विभिन्न संप्रदायों के गुरुद्वारे अलग-अलग हुए। उसके बाद उनके श्मशानघाट अलग हुए और अब पंजाब के गांवों में कब्रिस्तान धरती घेरते जा रहे हैं। दलित सिक्ख जट्ट सिक्खों की तरह ही केश दाढ़ी रखते हैं और कभी नहीं भी रखते। लेकिन, सिर पर पगड़ी अथवा परना अवश्य रखते हैं। किसी-किसी ने नाम के पीछे मसीह लिखना आरंभ कर दिया है परंतु, नाम किसी ने नहीं बदला। गुरुपर्वों पर, लंगर के समय और खालिस्तान का नारा लगाने के समय वे पीछे नहीं रहते। क्योंकि वे जानते हैं कि खालिस्तान बनेगा तभी मसीहीस्तान बन पाएगा।
सयाने लोग इस तथ्य से पूर्णतया अवगत हैं कि यदि अब पंजाब बंटा तो न केवल ब्यालीस-तैंतालीस प्रतिशत भूमि अलग छिटक जाएगी बल्कि देश भर के गुरुधामों के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे।
बात यह चल रही थी कि पंजाब में चमत्कार क्यों नहीं हुआ? प्रथमतः, कल तक भाजपा को गाली देने वाले अथवा भाजपा को अछूत मानने वालों को टिकट थमाकर उन समर्पित कार्यकर्ताओं को उनकी चंपीमालिश में लगा दिया जिन्होंने अपने जीवन के अनमोल बरस राष्ट्रहित में खपा दिए। और दूजे, यह जान लीजिए कि चमत्कार योजना बनाकर नहीं हुआ करते। इसके लिए घर-घर में बाबा नानक की वाणी गूंजनी चाहिए
“जैसी मैं आवै खसम की बाणी
तिसड़ा करीं ग्यान वे लालो
पाप की जंज लै काबलों धाया
जोरी मंगे दान वे लालो
सच ते धरम छप खलोये
कूड़ फिरे परधान वे लालो. . .”
और, घस्सुन के समीप होने का भय मिटाकर दशमेश पिता की राह चलना होगा
“देह शिवा वर मोहे इहै
शुभ करमन ते कबहूं न टरूं. . .”
सुनते हैं कि एक धर्मस्थान ऐसा भी है वहां जहां सब दिन निर्माण कार्य चला करता है क्योंकि उस क्षेत्र के अधिकांश परिवारों से न्यूनतम एक व्यक्ति विदेश में है। वे लोग वहां से उस स्थान के लिए दानस्वरूप जो धन भेजा करते हैं उसका दशमांश काटकर शेष उनके परिवार को दे दिया जाता है।
आपको तुरंत संज्ञान लेना होगा कि पंजाब में एशिया का सबसे बड़ा चर्च कौन बना रहा है, उसके लिए धन कहां से आ रहा है? यदि यह न हुआ तो बहुत-बहुत पछताना पड़ेगा। विश्वास जानिए पंजाब भारत की दाहिनी भुजा थी और है!
देश बचाना है तो पंजाब बचाइए और पंजाब बचाना चाहें तो ऐसी छन्नी का प्रबंध करें कि विदेश से आने वाला एक-एक पैसा उसमें से छनकर आए।
शेष भारत की ही भांति पंजाब में भी धर्म की बहुत हानि हो चुकी। सर्वधर्मसमभाव के झूठ का भंडाफोड़ करें। सनातनधर्म सभा और हिंदू महासभा को पुनर्जीवित करें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुगामी रहें। कोई भी मस्तक तिलकहीन न रहे। क्योंकि धर्म रहेगा तो देश बचेगा।
(अनाम चित्रकार द्वारा बनाया गया नीचे का चित्र बता रहा है कि यदि आज मतदान की पंक्ति में नहीं खड़े हुए तो कल इस पंक्ति में खड़ा होना पड़ेगा।)
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२