और कितने लोक!
मृत्यु लोक जिसे कहते हैं,
हम वहीं पर रहते हैं!
जीवन-मरण है जिसका कर्म,
आवागमन इसका मर्म !
फिर लोग यह क्यों कहते हैं,
कुछ तो अच्छा करले प्राणी,
लोक-प्रलोक तभी मिलते हैं!
तो सोचना पड गया ,
और कितने लोक यहाँ रहते हैं!
तब चल पड़े यह जानने,
और लोकों का आधार पाने!
विद्व जन यह कहते हैं,
अनेक लोक यहाँ रहते हैं!
ऐसा उनका अस्तित्व बताते,
ब्रह्म लोक ,ब्रह्मा जी का वास है,
बैकुंठधाम,श्री हरि विष्णु का निवास है!
कैलाश धाम में महादेव का वास है,
स्वर्ग लोक ,में देवों का निवास है!
इन्द्र यहाँ के हैं अधिपति ,
अन्य देवों की निर्धारित करते हैं कार्य पद्धति!
नर्क लोक में यम का वास है,
यम दूतों का यहाँ निवास है!
एक लोक और बताते,
स्वप्न लोक इसे कहाते !
यह लोक है हमारा,
जहां पर हम सपने बुनते हैं!
कभी नींद में,रहकर बुनते हैं,
कभी जागते हुए चुनते हैं!
बस सपने बुनते जाते,
देख -देख कर भरमाते !
कभी हासिल करने को आतुर हो जाते,
तो कभी-कभार असहाय रह जाते !
लेकिन यही एकमात्र लोक है हमारा,
जिसका अपने जीवन से है नाता !
यदि ध्येय बना ले कुछ है पाना ,
तो उसे पाने को परिश्रम करना होता है,
परिश्रम. भी शुद्ध आचरण से होता है!
इसमें विकार का आ जाना,
असफल कर देता है,इसको पाना!
और कभी कभार सफल हो भी जाएँगे,
तो उसमें वह भावना नहीं पाएँगे !
गलत तरीके से जो लक्ष्य को पाते हैं,
सदमार्ग से वह भटक जाते हैं!
जो भी तब वह करते हैं,
यश-अपयश में ही खोए रहते हैं!
और कभी किसी को छति पहुँचाई,
तो सुननी पड़ती है बद दुहाई!
और तब लोग यह कहते हैं,
यहाँ बच भी गए तो क्या, परलोक में बच पाएँगे।
इस प्रकार,यहाँ कई लोक हैं,
किंवदंती में ये सब लोक हैं ।