और कितनी देर रूठूँ
दृश्य: नायक देर से आया है और जिसके लिए नायिका के व्यथा कथा प्रस्तुत है
निर्मोही सांवरा, सता रहा मुझे
मुस्कुरा रहा है निर्लज्ज, जला रहा मुझे
मनाता भी नही, पता है उससे रूठी हूँ
ये कौन सी प्यार की रस्म है, बता जरा मुझे
निष्ठुर को दया भी नही इतनी, पास बैठ जाने दे
वक़्त कटता जा रहा है थोड़ा और नजदीक आने दे
निरे घोड़े को समझाने के लिए, हाय अब ट्यूशन दूँ क्या
निगोड़ा कान पकड़े माफी मांगे, ये भी मैं करूँ क्या
मुई फोड़ दिए करम, ये चाहत क्या है
सही कहा, गधी से हो प्यार तो परी क्या है
चलो ना मांगे माफी ना सही, हाथ तो थामे
कुछ लब यू शब यू कहे, मेरे दिल की तो जाने
देखकर मेरे बाबू को मेरी आह निकल जाती है
वरना मजाल क्या मुझे देखकर जुबान लड़खड़ाती है
चलो माफ किया तुझको, और कितनी देर रूठूँ
बातें कितनी उफन रही, जुबां कितनी देर रोकूँ
वो तो मेरे दिल के हाथों मजबूर हूँ मैं अबला
वरना इस जालिम जुल्मी का जुल्म कौन सहता