औरत हूँ !
औरत हूँ
कभी आग तो कभी पानी हूँ
कभी नीमगोली तो कभी गुड़धानी हूँ
छू लिया जो किसी ने आन मेरी
कभी लक्ष्मी बाई तो कभी रज़िया सुल्तान हूँ
कभी तीर तो कभी कमान हूँ
कभी ग़ुस्सा तो कभी प्यार हूँ।
प्यार रहूँ तो ठीक, गुस्सा हुई तो ?
तो बीमार कैसे हूँ ?
खुद को पता नहीं तुझको
मैं नहीं बीमार, तू है बीमार
मनुवादिता का है शिकार
सँभाल अपनी बीमारी,
जतन कर कुछ, धर ले अपने खीसे में।
मूरख है क्या तू ? क्या तू नहीं जानता
तुझ में ही नहीं तेरे बाप के भी नमक पानी में हूँ।
मेरा क्या मैं तो नार अलबेली
कभी मिश्री तो कभी करेले में हूँ ।
औरत हूँ, कभी प्यार कभी गुस्से के मनमानी में हूँ !
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31-01-2019
(सिद्धार्थ)