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5 Oct 2018 · 1 min read

औरत हूँ

औरत हूँ सपने बुन रही हूँ
पानी को तोडने का आसमान पे चलने का
आग को हथेलियों पे मसलने का
अंगुलियों पे चाँद नचाने का
क्या बुराई है सपने बुनने में
कुछ लोगों ने कहा
अरे पागल
पानी टुटा नहीं करता ,
आसमान पे चला नही करते
आग मसला ,
चाँद नाचा नहीं करते
मैंने कहा अरे पगले
पत्थर ,पेड, जानवर, नदी ,पहाड़
में भगवान हो सकतें है
तो पानी टूटेगा भी ,
आसमान पे चलूंगी भी,
आग को मसलूंगी भी
और…
और चाँद को अंगुलियों पे नचाउंगी भी,
या तो तुम पागल
या हम पागल
मैं तो औरत हूँ ,
सपने बुन रही हूँ
ख़ुद को धुन रही हूँ
सब की सुन रही हूँ,
अपनी गुन रही हूँ !
[मुग्धा सिद्धार्थ ]
10 /05 /2018

Language: Hindi
14 Likes · 2 Comments · 669 Views
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