औरत हूँ मै!
औरत हूँ मै!
चुप रहूँ मै, संब कुछ सहू मै, बोलू तो बदतमिज़ हूँ मै,
घुंघट करूँ मै, सिर झुकाऊं मै, देखे कोई और तो बदनचलन हूँ मै।
औरत हूं मै।
पराए घर की मै, पराए घर से मै घर से बेघर हूँ मै, पढ़ी लिखी मै, समझदार मै पेसे से गृहणी हूँ मै।
औरत हूँ मै।
बेटी भी मै, माँ भी मै, बहन भी ,पत्नी भी मै , दादी, नानी, बुआ, मासी सब हूँ मै पर बात जब हक की आए तो सिर्फ एक औरत ही हुँ मै ?
तो सुनो :- हाँ औरत हूँ मै और गर्व है मुझे की एक औरत औरत हूँ मै क्योकि औरत ही उस आँगन की तुलसी है जिससे पूरा घर महकता है और औरत ही वो पहिया है जिससे पूरा विश्व चलता है ।
ऋषिका