औरत तेरी है अजब कहानी
औरत तेरी है अजब कहानी
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औरत तेरी है अजब कहानी
तेरी महत्ता किसी ने न जानी
आँचल दूध से है भरा रहता
आँखों से सदा बरसता पानी
कर्तव्यों का ढिंढोरा पीटते
इख्तियारी को नहींं पहचानी
जबरन हैं इख़्तिलात में होती
इख़्तिलाफ़ नहीं,चाहे वीरानी
घर की नहीं घाट की है होती
हर कोई समझे है बेगानी
गमगीन हो,गम को रहें पीती
भूली बिसरी उलझी कहानी
बिना सुर लय के सदा बजती
मर्दानों को सहती है मरदानी
यौवन से प्रफुल्लित है होती
ढल जाती है चढ़ी हुई जवानी
प्रेमबोल न मिले प्रेम का मोल
तड़फती रहती बन के दीवानी
मिले न मंजिल न मिले ठोर
भटकती रहती राहें अन्जानी
सुखविंद्र स्त्री की व्यथा सुनाए
सच्ची बात बताता हैं जुबानी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)