औरत आज की
औरत आज की
“सुषमा कहाँ हो? ज़रा यहाँ तो आना।”
पति की आवाज़ सुनकर सुषमा रसोई से हाथ पोंछती हुई उनके पास आकर खड़ी हो गई।
“बोलिए जी,क्या बात है? क्यों बुलाया?”
“नहीं, ऐसी कोई विशेष बात नहीं है।यहाँ मेरे पास बैठो, अभी बताता हूँ।”अशोक ने कहा।
“अरे ,मुझे बहुत काम है।बैठने का टाइम नहीं है।नाश्ता बनाना है।जो भी बोलना है,जल्दी बताइए।”
“अच्छा ठीक है,बताता हूँ। मैं ये सोच रहा था कि आज बाज़ार चलते हैं।कुछ सामान लाना है।”
“आप ही चले जाइए। मेरे पास टाइम नहीं है।घर का इतना सारा काम बाकी है।जो लाना है, आप ही जाकर ले आइए।”
“नहीं, बिना तुम्हारे गए काम नहीं होगा। तुम्हें तो चलना ही पड़ेगा।”
“ऐसा क्या सामान लाना है? जिसको लाने के लिए मेरी जरूरत है।खुलकर बताइए।”
“मैं सोच रहा था कि तुम्हारे लिए कुछ कपड़े ले आऊँ।बहुत दिनों से तुमने कपड़े नहीं खरीदे।”अशोक ने प्यार से कहा।
“नहीं, मुझे अभी कपड़ों की कोई जरूरत नहीं है, जब होगी तब बता दूँगी।”
“ये तो संसार का आठवाँ आश्चर्य है। अरे, कोई महिला कभी कपड़ों और गहनों के लिए मना करती है क्या?”
“आपकी बात पूरी तरह सही है।पर हमें सदैव अपनी जरूरतों और जेब को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए।”सुषमा ने अशोक को समझाते हुए कहा।
अशोक ,सुषमा की बात सुनते हुए बड़े प्यार से टकटकी लगाए उसको देख रहा था।
डाॅ बिपिन पाण्डेय