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2 Sep 2020 · 1 min read

औदादे निकम्मी सरकार सी

*** औलादें निकम्मी सरकार सी ****
*****************************

औलादें निकम्मी होने लगी सरकार सी
अपनों को ही करने लगी दरकिनार सी

मुश्किलों से हो गुजर परवरिश करते हैं
बुढ़ापे में कुटुंब में हो समझ व्यापार सी

माँ खुद भूखी रह के पेट भरे संतान का
भंवर में छोड़े ,साहिल बिन पतवार सी

जीवन की पूँजी गवां बनते मोहताज से
शस्त्र बिना जैसे सैनिक लड़े लाचार सी

बूढ़ी आँखें बन बेसहारा सहारा ढूंढती
सहारे हैं छूटते जैसे छत बिन दीवार सी

मनसीरत हाल देख औलाद का बेचैन
उखड़ते हैं दरख्त,झौंका जरा बयार सी
*****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
489 Views
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