औकात ना भूल जाऊं कहीं
औकात ना भूल जाऊं कहीं,
हर रोज आइने से नजरें मिला लेता हूं।
दिल पत्थर ना हो जाए कहीं,
कुछ लम्हों को याद कर रो लेता हूं।
व्यस्तता भरे इस जीवन में,
आगे निकल ना जाऊं कहीं,
पीछे मुड़ अपनों से नजरे मिला लेता हूं।
औकात ना भूल जाऊं कहीं,
हर रोज आइने से नजरें मिला लेता हूं।
ऊँचाईयों छूने की चाह में,
शिखर पर अकेला ही न रह जाऊं कहीं,
पांव जमीं पर रख ऊँचा उठने की
हिम्मत को परख लेता हूं।
समय के अभाव में दर तेरा ना भूल जाऊं कहीं,
मां के कदमों में नमन कर तेरा दीदार कर लेता हूं,
औकात ना भूल जाऊं कहीं,
हर रोज आइने से नजरें मिला लेता हूं।
गुरू विरक
सिरसा (हरियाणा)