औकात जानता है
सुबह – दोपहर – शाम,दिन रात जानता है
कही – अनकही हर एक बात जानता है
तुम महज उड़ रहे हो… ये तुम्हे भी इल्म रहे,
वैसे खुदा तुम्हारी भी औकात जानता है
– सिद्धार्थ गोरखपुरी
सुबह – दोपहर – शाम,दिन रात जानता है
कही – अनकही हर एक बात जानता है
तुम महज उड़ रहे हो… ये तुम्हे भी इल्म रहे,
वैसे खुदा तुम्हारी भी औकात जानता है
– सिद्धार्थ गोरखपुरी