ओ , शाम गुजर
ओ ,शाम गुजर
धीरे – धीरे
दिन भर के थके
बटोही सब
तेरे आँचल की
छाया में
विश्राम तनिक
पा लेते हैं
तेरी मन मोहक
माया में
शीतल मन्द
पवन बहती है
नदिया के
तीरे – तीरे
ओ ,शाम गुजर
धीरे – धीरे
तेरी लाली को
निरख नीड़
की ओर पखेरू
लौट चले
थकित पंख
आनन्दपूर्ण
उल्लास लिए हैं
शाम ढले
तेरी झोली में
भरे पड़े हैं
मणि माणिक
मोती – हीरे
ओ, शाम गुजर
धीरे – धीरे