** ओ मृग नयनी **
ओ मृगनयनी
तेरी आँखों को मैं क्या कहूं ओ मृग नयनी
सागर सा है हिया तेरा उसमें है खारा पानी
ओ मृगनयनी
सागर सी गहराई लिए खंजन सी आँखे हैं तेरी
आँखों के अंजन में छुपा रखा है कौन सा राज
ओ मृगनयनी
समन्दर है कौन सा दिल में तेरे दिलबर जानी
मैंने जब देखा था तुझको सूरत लगी पहचानी
ओ मृगनयनी -2
आँखों में तेरे कौन सा सागर बसा है जो
दिनरात तेरी आँखों में भरा रहता है पानी
ओ मृगनयनी -2
जब तेरी मेरी पहली मुलाक़ात हुई तो मैंने पूछा
आँखों में काजल है या है अंखियां कजरारी
ओ मृगनयनी -2
आज भी तुझको सागर किनारे दिल ये पुकारे
तूं जो नहीं तो मेरा कोई नही है सागर किनारे
ओ मृगनयनी ओ मृगनयनी
?मधुप बैरागी