ओ बे-घर परिंदे ठिकाना बना ले
ग़ज़ल
ओ बे-घर परिंदे ठिकाना बना ले।
किसी दिल में तू आशियाना बना ले।।
कड़ी धूप तुझको परेशां करेगी।
सफ़र में कहीं शामियाना बना ले।।
ये लहजे को क्यों तल्ख़ तूने किया है।
तू अल्फ़ाज़ अपने तराना बना ले।।
तेरा सामना आज हुस्नो-हुनर से।
नज़र अपनी भी क़ातिलाना बना ले।।
ये महफ़िल जवां होएगी एक पल में।
तू अंदाज़ तो शाइराना बना ले।।
तेरा नाम शामिल हुआ आशिकों में।
ये सीरत ज़रा आशिकाना बना ले।।
ये फल तेरे क़दमों में आकर गिरेगा।
“अनीस” अपना पहले निशाना बना ले।।
– अनीस शाह “अनीस”