ओ नभ के मंडराते बादल
“ओ नभ के मंडराते बादल” कविता
ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर
अभी-अभी तो आया है तू
विशाल गगन पर छाया है तू
लौट ना जाना तुम अपने घर
नई नवेली दुल्हन सी शरमा कर
ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर
मैं भी एक मयूरा होता
देख कर तुमको बावला होता
पंख फैलाकर स्वागत करता
तुम्हें रिझाता नाच-नाच कर
ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर
मैं भी प्यासा धरती भी प्यासी
तेरे बिन हैं नदियाँ भी प्यासी
बरस जरा तू थम-थम कर
नन्हीं बूंदों की लड़ियां सी बनकर
ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर
मैं भी नटखट बच्चा बनकर
खुश हो जाता कागज की कश्ती तैरा कर
बहते पानी में कूद-फाँद कर
पपीहे-कोयल की बोली में गाकर
ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर
– आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार
मो० नं०- 8789441191