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30 Aug 2022 · 1 min read

ओ नभ के मंडराते बादल

“ओ नभ के मंडराते बादल” कविता

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

अभी-अभी तो आया है तू
विशाल गगन पर छाया है तू
लौट ना जाना तुम अपने घर
नई नवेली दुल्हन सी शरमा कर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

मैं भी एक मयूरा होता
देख कर तुमको बावला होता
पंख फैलाकर स्वागत करता
तुम्हें रिझाता नाच-नाच कर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

मैं भी प्यासा धरती भी प्यासी
तेरे बिन हैं नदियाँ भी प्यासी
बरस जरा तू थम-थम कर
नन्हीं बूंदों की लड़ियां सी बनकर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

मैं भी नटखट बच्चा बनकर
खुश हो जाता कागज की कश्ती तैरा कर
बहते पानी में कूद-फाँद कर
पपीहे-कोयल की बोली में गाकर

ओ नभ के मंडराते बादल
तनिक ठहर तनिक ठहर

– आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार
मो० नं०- 8789441191

1 Like · 999 Views
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