ओ नंद जसोदा ललना. . . .
ओ नंद जसोदा ललना, दीवाने आ गए हैं।
तेरी ब्रज गली में आके, कुछ तो पा गए हैं॥
मेरी चाहतों के मालिक, तेरे इंतज़ार में हूँ;
मेरी जिंदगी बना दे, मैं तेरे प्यार में हूँ;
मस्ती के आवारा बादल, गोकुल पे छा गए हैं।
तेरी ब्रज गली में आके, कुछ तो पा गए हैं॥
तुझे सौंप हम चुके हैं, ये डोर जिंदगी की;
अब जो घड़ी ये आई, बस तेरी बंदगी की;
जाना हमें किधर था, तेरी राह आ गए हैं।
तेरी ब्रज गली में आके, कुछ तो पा गए हैं॥
अरमान दिल के अपने, तुझसे छुपाऊँ क्या मैं?
किस मोड़ से हूँ गुजरा, तुझको बताऊँ क्या मैं?
अंज़ाम चाहे जो हो, तेरे दर पे आ गए हैं।
तेरी ब्रज गली में आके, कुछ तो पा गए हैं॥
गलियों में तेरी आके, रुसवा न हम यूँ होंगे;
देखके वफा हमारी, बेवफा न तुम यूँ होंगे;
इस दर्दे दिल पे मरहम, तेरे दीद लगा गए हैं।
तेरी ब्रज गली में आके, कुछ तो पा गए हैं॥
मेरे साँवरे सलोने, मुश्किल घड़ी हमारी,
दिन में न चैन आए, बेनींद रैन हमारी;
तेरे कटीले नैना, आग लगा गए हैं।
तेरी ब्रज गली में आके कुछ तो पा गए हैं॥
॥ जय श्रीकृष्ण॥
सोनू हंस