ओ आदम! तू चल आहिस्ता।
ओ आदम! तू चल आहिस्ता।
हो सब रोशन, जल आहिस्ता।
जब जब तड़पेगी ये धरती,
बरसेंगे बादल आहिस्ता।
सागर की लहरें अंबर तक,
नदिया की कल कल आहिस्ता।
डरना मत इन तूफ़ानों से,
मंज़िल छू, पैदल आहिस्ता।
एक नज़र बस देखा उसने,
देख शुरू हलचल आहिस्ता।
माना “आज” ख़फ़ा है हमसे,
पर सुधरेगा “कल” आहिस्ता।
सुंदरता कीचड़ में कितनी..?
खिलता देख कमल आहिस्ता।
चीख रही ख़ामोशी अंदर,
लहज़ा गर्म बदल आहिस्ता।
ठोकर बारम्बार लगी जब,
छोड़ दिए सब छल आहिस्ता।
रुकना मत मंज़िल से पहले,
कर मुश्किल को हल आहिस्ता।
लिखनी थी बस एक रुबाई,
कह दी किंतु ग़ज़ल आहिस्ता।
क़ातिल को खोज “परिंदे” की,
नज़रों से ओझल आहिस्ता।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊