ओढ़ तिरंगे को
ओढ़ तिरंगे को क्यों पापा आये है?
माँ ! मेरा मन, क्यों समझ न पाये है?
पापा मुन्ना मुन्ना ,कहते आते थे,
टॉफियाँ खिलौने भीे, साथ में लाते थे।
गोदी में उठा के मुझे,खूब खिलाते थे,
हाथ फेर सर पे, प्यार भी जताते थे।
पर आज न जाने क्यों ,वह चुप हो गए हैँ,
लगता है कि आज वह,गहरी नींद सो गए हैं ।
नींद से उठो पापा ,मुन्ना बुलाये है,
ओढ़ तिरंगे को क्यों पापा आये है?
फौजी अंकल की भीड़ ,घर पर क्यों आई है?
पापा का सामान भी,क्यों साथ में लाई है?
वह मेडलों के हार ,क्यों साथ में लाई है,
हर आँख में आंसू क्यों,भर कर लाई है।
चाचा, मामा ,दादा ,दादी हैं चीखते क्यों?
मेरी माँ तू ही बता ,वे सर हैं पीटते क्यों?
गाँव क्यों पापा को ,शहीद बताये है,
ओढ़ तिरंगे को क्यों पापा आये है?
माँ क्यों इतना रोती ,ये बात बता दे मुझे,
हर पल क्यों होश खोती, यह समझा दे मुझे।
माथे का सिन्दूर क्यों ,दादीजी पोंछती हैं,
लाल चूड़ी हाँथ की क्यों ,बुआजी तोड़ती हैं।
काले मोतियन की माला, क्यों तुमने उतारी है,
क्या तुझे हो गया माँ ,समझना भारी है।
माँ तेरा ये रूप, मुझे न सुहाये है,
ओढ़ तिरंगे को क्यों ,पापा आये है?
पापा कहाँ जा रहे अब, ये बतलाओ माँ,
चुपचाप बहा के आंसू,यूँ न सताओ माँ ।
क्यो उनको उठा रहे सब, हाथो को बांध करके,
जय हिन्द बोलते क्यों,कन्धों पे लाद करके।
दादी खड़ी है क्यों ,भला आँचल को भींच करके।
आंसू बहे जा रहे क्यों,आँखों को मींच करके।
पापा की राह में क्यौ, ये फूल सजाये है।
ओढ़ तिरंगे को क्यों पापा आये है?
लकड़ियों के बीच में क्यों ,पापा को लिटाये है।
सब कह रहे उनको लेने,श्रीरामजी आये है।
पापा! दादाजी कह रहे हैं,तुम्हें जलाऊँ मैं।
बोलो भला इस आग को ,कैसे लगाऊं मैं।
इस आग में भस्म होके ,साथ छोड़ जाओगे।
आँखों में आंसू होंगे, बहुत याद आओगे।
अब आया समझ में माँ ने ,क्योंआँसू बहाये थे।
ओढ़ तिरंगा क्यों ,पापा घर आये थे ।