ओशी
मेरी प्यारी बेटी
ओशी (Oshi )
बहुत -बहुत प्यार। आज तुम्हारा जन्म दिन है, खुश हूँ मैं बहुत खुश, तुम्हारे पास होती तो गले लगा के कहती “जन्मदिन मुबारक हो मेरी बच्ची ” पर कोई बात नहीं, प्यार को शब्दों की जरूरत कहाँ परती ? जहाँ पड़ने लगे तो समझो कहीं कुछ कमी है।
तुम्हें पता है, जब भी तुम्हें याद करती हूँ छोटी सी Oshi याद आती है । मेरे कानों को अपनी छोटी -छोटी रुई के फाहे जैसी अंगुलियों से खेलती हुई । पर समय गतिमान है अथक चलते रहना ही उसकी पहचान है। इसी गति के कारण आज अपने उम्र के तुम तेरहवें साल में प्रवेश कर रही हो, अच्छा है पर बदलते समय में अपने आप को मत बदलना, अपने अंदर के निश्छल, निःस्वार्थ प्रेम को मरने मत देना। आज के हालात में जरूरी है कि इंसान के अंदर का बच्चा जीवित रहे, फले -फूले क्यों कि जैसे ही वो बच्चा सुषुप्ता अवस्था में जाता है, एक बड़ी भीड़ तैयार खड़ी रहती है दबोचने के लिए।
थोड़ा अजीब है, पर आज के संदर्भ में बिलकुल सही।
मैं परेशान रहती हूँ, बर्दाश्त नहीं कर पाती, समझ भी नहीं पाती कि आखिर लोग अपने समझने बूझने कि शक्ति को कहाँ छोड़ आये हैं।
कैसे एक इंसान दूसरे को सिर्फ धर्म के नाम पे, जेहाद के नाम पे इतनी भीषण मौत दे देतें हैं कि मुर्दों के आखों में भी आँसू आजाए। पर वो पत्थर हो गए लोग हैं, जिनमें जीवन तो है पर प्यार मर गया है, आँखें तो है पर सपना मर गया है या मार दिया गया है , या सपने कि तासीर बदल दी गई है । हंसते-मुस्कुराते चेहरों कि जगह मिट्टी के भगवान और अपनी जाई के जगह गाय को खड़ा कर दिया गया है । ताकि उनके सिंहासन के बीच कोई न आसके ।
कभी-कभी जी चाहता है जोड़ से चीखूँ और उन धर्म के ठेकेदारों को कहुँ, हाँ मैं हिन्दू हूँ चलो देती हूँ तुम्हारा साथ, तुम्हारे हर कहे को ब्रम्ह वाक्य समझूंगी पर सावधान पहले मेरी मांगे पूरी करो। मेरे लोटे में जो आब-ए -जमजम और गंगा का पानी मिला है उसे अलग करो। पानी के बहते हर स्रोत में जब सभी धर्मों के लोग,पशु- पक्षी इस चराचर का हर जीब अपनी मैल धोता है और पानी अपनी शुद्धता नहीं खोती उसे हिंदू करो, सूरज -चाँद को कहो कि कैसे वो एक साथ सब के आंगन में अपनी किरणें और शीतलता बिखेरे सकता है । हवा से कहो कि किसी शूद्र या मुसलमा को छू कर हम तक न आए।
पहले इनका बटवारा करो फिर हमें धर्म कि बेदी पे चढ़ाना। पर अफ़सोस नहीं कह पाती किसी से।
निराश मत होना बच्चे, ये डरे हुए लोग हैं अभी मजबूत दिख रहें हैं पर हैं नहीं। हमारे जैसे लोग जो खड़े हैं उनके रास्ते में, और कुछ हो या न हो उनके तलवों को तो हम जरूर जख़्मी करेंगे।
तुम परेशान होगी कि जन्म दिन के मौके पे तुहें बधाई देने के बजाय ये क्या सब लिख रही हूँ। तो इसपे भी जय्दा मत सोचो बात बस इतनी है कि अब मैं माँ जैसा महसूस करती हूँ अपने फैसले से अब मुझे सुकून मिलता है। मुझे अपना बच्चा नहीं चाहिए अपना एक होता या दस अंत में बेईमान ही बनाता मुझे, सिर्फ उस के लिए सोचती पर अब मेरा परिबार बहुत बड़ा हो गया है ।
कहीं भी किसी के भी बच्चे के साथ कुछ बुरा होता है तो मैं अंदर से हिल जाती हूँ, किसी भी बच्चे में मुझे मेरा ही अंश दिखता है। है न अच्छी बात और तुम लोग तो मेरे सांसो में बसते हो। आज भी मन बेचैन था पिछले कई दिनों से देश के बिभिन्न हिस्सों में रोज बलात्कार की बढ़ती संख्या को ले कर अच्छा छोड़ो ये बातें चलो तुम्हारे जन्म दिन पे कुछ अच्छा सा तुम्हारे लिए कहती हूँ।
“जन्म दिन पे आज प्रिय, यही अभिलाषा करती हूँ
पलाश खिले हिय में तुहारे, बस इतनी कामना करती हूँ ”
तुम्हारी। … ओशु माँ (मुग्द्धा सिद्धार्थ )