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7 Jan 2024 · 3 min read

ऑफ्टर रिटायरमेंट

चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर उनींदी आंखों से जब घड़ी की तरफ देखा, तो धुंधली सी आकृति में छः सवा छः का समय दिखा। तुरंत उठकर तैयार होने वाशरूम की तरफ चल पड़े, क्योंकि बच्चे को स्कूल बस पकड़ाना था और इसी बहाने वॉकिंग भी हो जानी थी। वरना दिनभर करना ही क्या है? बच्चे को छोड़कर वापस आया ही था कि श्रीमती जी भुनभुनाते हुए चाय ले आईं और बोलीं, “नहाना हो तो जल्दी नहा लीजिए।”

मैंने कहा, “जल्दी? अब काहें की जल्दी। आखिर जाना ही कहाँ है।” तो वो बोली, “हाँ, आपको तो कोई काम है नहीं, पर मेरे अभी सारे काम ज्यों के त्यों पड़े हैं। बाथरूम में ढेर सारे कपड़ों का अंबार लगा है, झाड़ू-पोछा के बाद उसे भी धोना है। उस समय आप आना-जाना शुरू कर देंगे। रिटायर्ड आप हुए हैं, मैं थोड़े ही न रिटायर हुई हूँ।”

नाश्ता कर के वापस बिस्तर पकड़े ही थे कि मैडम जी फिर तांडव करते हुए प्रकट हो गईं – “सुनते हैं जी! जरा पास के किराने से धनिया, अदरक तो लेते आईये और अगर दिनभर पड़े-पड़े चाय की फरमाइश करनी हो तो दूध की थैली भी।”

अब मैं इसी लायक ही तो रह गया था, मेरे जाने की इच्छा न होते हुए भी अनमने भाव से उठ बैठा कि चलो इनके फरमाइशों के लिस्ट के बहाने चौराहे तक घूम ही आएं, वहीं पर जरा गपशप भी लड़ाते आएंगे। टीवी के उबाऊ और बेसिरपैर वाले बहस से अच्छे लोकल मसालेदार खबर ही मिल जाएंगे। पर इससे पहले घर से निकलते ही कि अगला आदेश, “जल्दी आईयेगा, वहीं रह मत जाईयेगा, खाना बन गया है।”

10 बजे तक खा कर बाहर धूप में आराम कुर्सी लगाकर बैठ गया, बाहर धूप सेकने का तो सिर्फ बहाना होता है, उस समय अपने अपने काम पर हड़बड़ी में निकलते पड़ोसियों को रोस्ट जो करना है। आज फिर तिवारी जी की बाइक स्टार्ट नहीं हो रही थी, शर्मा जी झुंझलाहट में लंच बॉक्स सहेजते हुए लगभग दौड़ते हुए निकल रहे थे कि कहीं बस न छूट जाए और मनोहर बिना हवा वाले साइकिल घसीट कर चल पड़ा।

कभी कभी उनपर ताने मारते हुए मेरे मन में कुछ टीस सी हो उठती है कि काश मैं भी री-ज्वाइन कर पाता पर शारीरिक अक्षमता के वजह से ही तो मेडिकल रिटायरमेंट लेना पड़ा वरना अभी रिटायर्ड होने वाली उम्र थोड़े ही न थी।

आजकल समय व्यतीत करने हेतु गुगल महाराज और यूट्यूब महारानी मेरी सहायक हैं, नए-नए फ्लेवर में केक, पिज़्ज़ा, होममेड बिस्किट और ब्रेड के साथ-साथ कई प्रकार के मसाले, गैर-मसालेदार पनीर पकाना रुचिकर लगता है, और रही सही कसर पूरी करने हेतु राजकुमारी फेसबुकिया भी अक्सर नया कलेवर दिखा ही जाती है। अभी एनिमल और वो पहाड़ी सांग ‘ठुमक-ठुमक जब चले तू पहाड़ी मा’ पर अतरंगी स्टेप और रंग बिरंगी रेसिपी चल रहा है, जो कभी अच्छे बन जाते हैं तो कभी टाइम पास ही रह जाता। पर खुशी इस बात की है कि अब न सीनियर के ताने ही सुनने को मिलते हैं और न ही जूनियर के बहाने। अब न तो बेवजह की झिक-झिक ही है, और न ही छुट्टी के गीत गाने पड़ते हैं। वो कैलेंडर में छुट्टी जाने वाले तारीख पर निशान लगाकर उसका इंतजार करने के बजाय अब रिटायर हुए कितने दिन, महीने और साल हो गए यही गिने जा रहे है, अब छुट्टी का इंतजार नहीं है। पर फिर भी एक रविवार का इंतजार जरूर रहता है, इसलिए नहीं कि उस दिन मुझे कहीं जाना है, बल्कि इसलिए कि उस दिन सबकी छुट्टी होगी। उस दिन स्कूल, कॉलेज बंद होने से वो बच्चे घर पर होंगे जिनका बचपन इन आँखों ने नहीं देखा, उस दिन मेरे छुट्टी आने के राह देखते देखते लगभग अपनी जवानी खो देने वाली मेरी श्रीमती जी का काम कम होगा, उस एक दिन ही तो मुझे मेरे पड़ोसी शांत और मितभाषी लगते हैं, उस दिन मेरे अपने मेरे यहाँ भी आएंगे इसकी उम्मीद भी रहती है, और उसी दिन मेरे खुद के द्वारा खुद पर लगाये हुए ड्राई डे की बंदिश भी तो खत्म होती है। वह एक दिन का संडे मेरे रिटायरमेंट के अवधि में एन्जॉय डे बन कर आता है। समस्त रिटायर्ड दोस्तों को उनके अपने अपने चाहतो वाले प्याले के साथ समर्पित… चियर्स!

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०७/०१/२०२४)

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