ऑफिस मे मै।
रोज मै कुछ न कुछ ढूंढ़ता रहता हूँ।
कंप्यूटर के क्लिक से ब्राउज़र की ब्राऊज़िंग तक मै उलझा सा रहता हूँ।
ऑफिस के कमरे की खिड़की से लोग गुज़रते देखता रहता हूँ।
कोई बुला ले तो बोल पड़ता हूँ वरना मूक बधिर की मुकता को ओढ़े रहता हूँ।
रोज सुबह उठकर दफ्तर को चल पड़ता हूँ।
घर आने का पता नही फिर भी अनजानी-अनछुई फाइलों मे ख़ुद को छुपाये रखता हूँ।
कोई ख़ुद को श्रेष्ठ बताता है कोई मुझमे खोट निकलता है।
मै बरगद की छाल सा झुका सबकी सुन ऑफिस से निकल आता हूँ।
होड़ नही यहाँ किसी से मेरी ये मै ख़ुद को बार-बार समझाता हूँ।
गर ख़ुद पे आ जायें बात इश्कबाज़ तो भगत ऑफिस के हर काम को कर के बतलाता है।
#रमन इश्कबाज़