ऑनलाइन काम
ऑनलाइन काम”
कोरोना लॉक डाउन में कार्यस्थल हो गए ख़ाली,
covid 19 संकट में, है हर तरफ़ बदहाली।
अब काम के लिए उत्तम जगह बस घर है,
ऑनलाइन काम संकट काल में एक अवसर है।
मज़दूर से ऑनलाइन का नहीं दूर का नाता,
शिक्षा, सूचना, प्रसारण को ऑनलाइन रास आता।
दुष्प्रचार और प्रोपगैंडा को ऑनलाइन ही भाता है,
इनके लिए अफ़वाहों का काम आसन हो जाता है।
इसको स्थापित करना सत्ता का ज़िम्मा है,
ऑनलाइन काम की भी अपनी कुछ सीमा है।
निजता पर हमला ना हो, इसकी क्या तैयारी है,
ऑनलाइन में डाटा चोरी होने का ख़तरा भारी है।
ऑनलाइन विकल्प नहीं है कार्यस्थल के कामों का,
लेना पड़ेगा सहारा संकट में कुछ पुख़्ता इंतज़ामों का।
कम्प्यूटर से ऑनलाइन कृषि योजना बन जाती है,
धरातल पर क्रियान्वयन में मुश्किल हो जाती है।
नौकरी, कार्यालय के काम में हो सकती है आसानी,
ऑनलाइन किसी भी सूरत में हो सकती नहीं किसानी।
दुष्प्रचार, अफ़वाहों को ऑनलाइन भी अवसर है,
ये तो प्रयोग करने वालों की नीयत ऊपर निर्भर है।
ट्विटर पर सरकार चल रही, मंत्रीगण हैं लगे हुए,
व्यवस्था को सुधारने हेतु रात-रात भर जगे हुए।
मशीनों का है लोड बढ़ गया बार-बार ये अटक रही,
व्यवस्था पटरी से उतरी रेल भी गंतव्यों से भटक रही।
किसानी संकट में भी आज उत्पादन है कर रही,
कृषि ही आज आपदा में मानव का पेट भर रही।
संकटकाल में भी जो उत्पादन कर रही वो खेती है,
किसान फसल ले रहा है और गाय भी दूध देती है।
ऑनलाइन में कारख़ाने बंद, है काम रुका,
है आपदा में मज़दूर बेबस, निरीह और भूखा।
संकट झेलता है मानव पर कभी नहीं झुका है,
मानव-विकास आपदाओं में भी कब रुका है।