ऑंसू
दिल का दर्द कहाँ से बहता
कौन करुण पीड़ा को कहता
टूटे मन से विपदाओं को
आखिर कोई कैंसे सहता
सजल नयन नीरस होते तब
सूखी आंखों से क्या रोते ?
आँख में जब आँसू न होते ।
निर्दय दुनिया साथ छोड़ती
दुर्दिन में मुँह वाम मोड़ती
एक कड़ी जीवन की जुड़ती
आ विपदा सौ कड़ी तोड़ती
तब नीरस को सरस बनाने
कैंसे अपने नयन भिगोते ?
आँख में जब आँसू न होते ।
बूंदों में दुख का यह सागर
भर लेता है सुख की गागर
क्रूर काल की रणभूमि में
मृदु मुस्कान धरे नट नागर
अश्रु बिंदु से दुखित जनों के
कष्ट भरे पट कैंसे धोते ?
आँख में जब आँसू न होते ।
– सतीश शर्मा , नरसिंहपुर
मध्यप्रदेश