*ऑंखों के तुम निजी सचिव-से, चश्मा तुम्हें प्रणाम (गीत)*
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ऑंखों के तुम निजी सचिव-से, चश्मा तुम्हें प्रणाम (गीत)
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ऑंखों के तुम निजी सचिव-से, चश्मा तुम्हें प्रणाम
1)
ऑंखों पर तुम टिके हुए हो, ऑंखें तुम पर टिकतीं
अगर न होते तुम तो ऑंखें, दो कौड़ी में बिकतीं
घर बाहर दफ्तर दुकान पर, आते हरदम काम
2)
बिना तुम्हारे ऑंखें पल में, अस्त-व्यस्त हो जातीं
अनजानों को छोड़ो अपनों, तक को जान न पातीं
जिनका तुम पढ़वातीं उनका, पढ़तीं ऑंखें नाम
3)
कल तक ऑंखें अपने दम पर, लिखती-पढ़ती रहतीं
अब ऑंखें निर्भर हैं तुम पर, जो कहते तुम कहतीं
जिस क्षण तुम उतरे ऑंखों से, ले लेतीं विश्राम
ऑंखों के तुम निजी सचिव-से, चश्मा तुम्हें प्रणाम
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451