ऐ सावन अब आ जाना
सावन जो तू आया ही है
मेरे घर भी आ जाना ।
रिमझिम रिमझिम तृप्ति बूंद कुछ
मेरे घर बरसा जाना ।
कब से सूना रिक्त पड़ा घर
अतिथि कोई भी आया ना ।
तू अपने टिप – टिप कदमों से
कोई अनहद नाद बजा जाना ।
ऐ सावन यदि न आया तू
ये हृदय सूख सब जायेगा ।
सामर्थ्य वपन की खोकर फिर
अस्तित्व मरू हो जायेगा ।
धू-धू कर चिता जलेंगी सब
रह-रहकर मेरे स्वप्नों की ।
मर्मान्तक दृश्य मेरे उर का
जीवन कैसे लख पायेगा ?