ऐ सनम तेरी नज़रें
ऐ सनम ये तेरी नज़रें हैं या काँटा कोई,
तू जो देखती है तो इक चुभन सी होती है।
जो गुजरतीं हैं हवायें तेरे जिस्म को छूकर,
तो मेरे रूह में इक छुअन सी होती है।।
ऐ सनम ये तेरी नज़रें हैं या काँटा कोई,
तू जो देखती है तो इक चुभन सी होती है।
जो गुजरतीं हैं हवायें तेरे जिस्म को छूकर,
तो मेरे रूह में इक छुअन सी होती है।।