ऐ मंज़िल अब तो आ…
ऐ मंज़िल अब तो आ..
थक गए राह चलते चलते
लड़खड़ाते हैं अब कदम,
पैर हो गए है लहू लुहान ।
आँखों में भर आये आंसू,
हकलाई हकलाई सी है जबान ।
रुक सी रही है धडक़ने,
टूट रही है साँसों की कमान ।
बोख्लाई सी है निगाहें,
शरीर हो रहा है बेजान।
हर तरफ है सूनापन,
मौत-ज़िंदगी है एक समान।
अब तो थोड़ा तरस खा…ऐ मंज़िल
ऐ मंज़िल अब तो आ….
**##@@कपिल जैन@@##**