ऐ दुख्तर -ऐ -जान ( प्यारी बेटी निर्भया की याद में …)
तेरे दर्द से बाबस्ता कौन होगा ऐ दुख्तर -ऐ-जान !,
वही तो होगा जिसके तेरे दर्द में बसती हो जान ।
जो तुझपर कयामत गुज़री वो भुलाने काबिल भी नहीं,
तेरी रूह के साथ-साथ जिसने छलनी किया दीनों-ईमान ।
तेरे दर्दों -गम के एहसास को न समझ सकी तो ये सरकार! ,
समझे तो तब न जब इनपर भी गुजरे वही ज़ुल्म की इंतेहा ।
दें तारीख पे तारीख ,बस तारीखों पर ही गुज़ार दिये 7 साल ,
इंसाफ नाम की कोई चीज़ नहीं,कहने को फास्ट ट्रैक कानून ।
जाने क्यों फिर भी उम्मीदें है इस इंसाफ नाम के धोखे से? ,
जिसके लिए अश्क-खून का घूंट पीकर जीते हैं तेरे वालिदान ।
हम इन्सानो की बस्ती में रहते तो है मगर हमें शक़ -शुबह भी ,
है हर शख्स अंदर से वहशी-दरिंदा,बाहर से जो दिखता है इंसान । अब और क्या कहे तुझसे यह ‘अनु” ऐ दुख्तर-ऐ-जान (निर्भया ) !
दिल तेरे गमों से बोझिल है ,नाशाद है और है बहुत ही परेशान।