ऐ ! तिमिर
दूर हो जा ऐ ! तिमिर,
देख मैने दीप सजाये,
झिलमिल रोशनी ने,
तेरे अरमान हैं मिटाये |
बातियों सी हूँ जली मैं ,
नीर को बना तेल मैं ,
जाने कितनी बार देखो ,
दीये को भरती ही रही |
तुम हो अकेले ऐ ! तिमिर,
किंतु मैं हूँ संग दीये के,
आज है दीप्त हर कोना,
और उल्लसित हर मन|
भागना ही होगा तुम्हे ,
आज मुँह छुपा कर ,
रोशनी की भींड से,
दूर हो जा ऐ ! तिमिर||
…निधि…