ऐ तक़दीर तू बता ज़रा…..!
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा
तदबीर से क्यों रूठी हुई
तू भी अपना काम कर
वो अपना काम कर रही
तेरे रूठने के बाद भी देख
उसने हार मानी नहीं
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
वो रात दिन रहे जूझती
तू आराम से सोयी पड़ी
ग़र साथ उसका तू दे ज़रा
आसान हो मुश्किल घड़ी
वो मोड़ देगी पहिया वक्त का
ग़र हो जाए साथ तू खड़ी
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
माना वो अकेली पड़ गयी
थक गयी है साँस उसकी फूली हुई
मगर लगता नहीं मैदान से हटे कभी
घुटने न टेकेगी अपने ईमान पे डटी
ग़र तू उससे कंधा मिला दे
देखना छूने लगेगी वो बुलंदियाँ नयीं
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
चाहे वक्त से वो अकेले ही भिड़ गयी
काम के बोझ से फिर भी वो ना डरी
काम से टलने की कला उसे आती नहीं
छुटकारा पाने वो कहीं छुप जाती नहीं
ग़र तू उसकी दोस्त कभी बन गयी
वो उड़ेगी तोड़ पाँव की बेड़ियाँ सभी
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा…!
उसका दिया है शायद टिमटिमा रहा
लगता है बाती काफ़ी जल चुकी
शायद उसका तेल भी कम हो गया
डर है तेज़ हवाएँ उसे बुझा न दें कहीं
ग़र बचा ले बुझने से तू उसकी लौ अभी
देखना फिर सर होतीं उससे मंज़िलें नयीं
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
एक और एक मिलकर ग्यारह ही बनें
यह जानते हुए भी तू क्यों पीछे हटी
जाग उठकर पकड़े ले उसका हाथ तू
पत्थरीली राहें भी हमवार हो जाएँगी
ग़र भूला दे तू अपने गिले शिकवे सभी
देखना संवार देगी वो मुस्तकबिल कई
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!
इत्तला मान या समझ इसे मेरी तजवीज़ ही
यहाँ यकीन से बात होती है सिर्फ़ तदबीर की
शक की नज़र से ही देखता है तुझे हर कोई
हर कोई दुविधा में है तुम साथ दोगी या नहीं
ग़र शोहरत चाहिए तो दरियादिली दिखा ज़रा
वरना उसकी हार में मिलेगी तुझे बस हार ही
ऐ तक़दीर तू बता ज़रा….!