….ऐ जिंदगी तुझे …..
….ऐ जिंदगी तुझे …..
ऐ!जिंदगी ,बचपन से ही तुझे
उलझते हुए देखा है
पसीने से लथपथ पिता का शरीर देखा है
मां की आंखों मे ममता का प्यार देखा है
अमीरी और गरीबी में फरक देखा है
जमीन से खड़े होकर फलक देखा ह
खुद को हमेशा आंसुओं से तरबतर देखा है
भीगी पलकों से मगर उगता सहर देखा है
ऐ!जिंदगी तुझे….
जाने क्यू पिंजरे मे प्यार को बेअसर देखा है
ना जाने क्यूं सितारों को बहुत दूर देखा है
समझदारी के बोझ का सरदर्द देखा है
बहुत दूर ही शायद कोई हमदर्द देखा है
सुलझते है जिंदगी के पन्ने कभी
तो कभी जुदाई के गम में उलझते देखा है
ऐ !जिंदगी तुझे…
कभी संस्कारो के तले, दबते हुए देखा है
तो कभी अपनो को पराया होते हुए देखा है
रिवाजों से जिंदगी को दम तोड़ते देखा
कभी वीरानगी को चमन मे बदलते देखा है
ऐ ! जिंदगी हर रंग में तेरा शामोसहर देखा है
हर किसी के साथ तुझे अलग नजर देखा है
ऐ! जिंदगी बचपन से ही तुझे उलझते हुए देखा है..
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नौशाबा जिलानी सुरिया