ऐसे ही कोई चलते फिरते राहों में मिल जाता है
ऐसे ही कोई चलते फिरते राहों में मिल
जाता है…….,
ऐसे ही कोई चलते फिरते यू हमसफर बन
जाता है…,
चार कदम जो साथ चलो तो मन क्यों
घबराता है..,
कठिन समय साथ रहे वो ही अपना
कहलाता है…..,
है सभी की नजरें तुम पर, अब काहे
मुरझाता है……,
खुद पर काबू कर , क्यों गैरों को गलत
बताता है….,
ठहरने का वक्त नहीं है अब काहे
सुसताता है…,
वक्त जो गर निकल गया फिर बाद में
पछताता है….,
✍कवि दीपक सरल