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23 Jan 2017 · 1 min read

ऐसे में क्या लहू का रंग बदल जाता है …

यह तेरा है यह मेरा है
मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा है
किसने इनमें किया बँटवारा है
तू हिंदू है तू मुसलमान है
तू ईसाई और तू सिक्ख है
क्या देख लहू पता चल जाता है
ऐसे में क्या लहू का रंग बदल जाता है ?

कोई खाता आराम से बादाम पिस्ता
कोई बेचारा कांदा रोटी को तरसता है
कोई जाता शान से खुद अपने यान में
तो कोई बोझ रोटी खातिर उठाता है
सोच विभेद को मन में दुःख मचल जाता है
ऐसे में क्या लहू का रंग बदल जाता है ?
….
क्यों मनुज कोई पथभ्रष्ट तो आदर्श होता
विनाश करने कोई आतंकवादी तो
कोई बचाने अमर बलिदानी बन जाता है
एक का खून ख़ौलता इंसानियत को छलने में
वहीँ दूजा न्यौछावर मानवता की पीड़ा हरने में
क्या देख लहू इनका पता चल जाता है
ऐसे में क्या लहू का रंग बदल जाता है ?
….
उसी जननी से जन्म लेते
यह बेटा है यह बेटी है
बेटा है तो सब अधिकार खुद उसकी झोली में
बेटी है तो जीने के के लिये भी बिलखती है
क्या बेटे का लहू लहू है और बेटी का पानी है
यह नज़रिया समाज को निगल जाता है
ऐसे में क्या लहू का रंग बदल जाता है ???
….
@ डॉ. अनिता जैन “विपुला”

Language: Hindi
361 Views

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