ऐसे भी हमने देखा है
हमने आसमां के पंछियों को जमीन पर बैठे देखा है…..
मुस्कुराती चेहरों में भी उदासी को छिपे देखा है..
अपना काम बनते ही लोगों को अजनबी होते देखा है….
मयखाने में बुजुर्गों को भी जवान होते देखा है….
हमने दो कौड़ी के लोगों को खुदा बने देखा है…..
एक अजनबी की बातों में अपनापन भी देखा है…..
क्यों भूल जाते हैं लोग अपनी औकात पैसा आते ही
हमने बड़े-बड़े महाराजा को भी फकीर होते देखा है…..
जीवन में संघर्षों से लड़ते लोगों को देखा है…
थोड़ी सी दौलत पाते ही लहजे बदलते देखा है….
बेवफा तो हंसते रहते हैं हमेशा
सच्चे आशिकों को मैंने महफिलों में रोते देखा है…..
वक्त के साथ मैंने सबको बदलते देखा है….
कागज की कश्ती को भी पानी में चलते देखा है….