‘ ऐसे नभ से बरसा पानी ‘
ऐसे नभ से बरसा पानी,
बिजली चमक उठी गगन में,
कंपन होते प्राण भवन में,
हृदय को मेरे पिघलाती
निष्ठुर मौसम की मनमानी,
ऐसे नभ से बरसा पानी,
धुली आस कोमल अंतर की,
बही संपदा जीवन भर की,
फिर भी लेती रहीं लहरियाँ,
हमसे निधियों की कुरबानी,
ऐसे नभ से बरसा पानी,
धार-धार में तेज़ लहर है,
लहरों में भी तेज़ भँवर है,
सपनों का हो गया विसर्जन,
घेरे आशंका अनजानी,
ऐसे नभ से बरसा पानी ,
नदियों ने धारायें बदली ,
लहरें हो गईं है तूफानी ,
जल ने विनाश की ठानी ,
ऐसे नभ से बरसा पानी ।