ऐसे छू छू जैसे बाला रूप में छुछुंदरी।
एक घनाक्षरी हास्य रस
सलीका नहीं पता तुम्हें बोलने का बोलती हो।
ऐसे छू छू जैसे बाला रूप में छुछुंदरी।
मुंह लटकाई ऐसे लगती हो जैसे कोई।
बिल्ली बनना चाह रही रूप से हो सुन्दरी।
मारने पे तुली क्यों हो मुझको डुबो डुबो के
नयनों से लगती हो मादक समुंदरी
रूपवती तुमको दुनियां ने कहा है किंतु
मेरे लिए तुम तो हो चुलबुली बंदरी।
©®दीपक झा रुद्रा