ऐसी सोच क्यों ?
मुझे कुछ महिलाओं की पोस्ट पढ़कर ऐसा लगता है कि वह पुरुषों की बराबर अधिकारों में नहीं बल्कि नशा, अय्याशी इत्यादि चीजों में करना चाहती हैं। आखिर अपने आप को फेमिनिस्ट कहकर पुरुषों की बराबरी को सिर्फ बुराइयों में ही क्यों तोलती है ? प्रकृति ने सभी जीवों में नर और मादा बनाए है। मादा के बगैर किसी भी जीव का प्रजनन संभव नहीं है। एक मादा के अंदर जो भाव और ममता होती है वह किसी नर के अंदर आपको नहीं मिल सकती है।
आजकल भारतीय समाज की स्त्रियां पश्चिमी देशों की संस्कृति को तेजी से अपना रखी है। भारत सदियों से पुरुष प्रधान देश रहा है। भारत की संस्कृति पुरुष को सर्वश्रेष्ठ घोषित करती है। हो सकता है इसी संस्कृति के लक्षण ने मुझे यह आर्टिकल लिखने पर मजबूर किया हो। भारतीय महिलाएं जातिवाद पर लिखना या आवाज उठाना नहीं चाहती है। और तो और वह अपनी रिश्तेदारी भी अपनी ही जाति के अंदर खोजना चाहती है। मैंने तो यहां तक देखा है बहुत सारी लड़कियां प्रेम तक भी अपने ही जाति के लड़के से करती है। इसके अलावा भारतीय समाज की सवर्ण महिलाएं दलित महिलाओं को हीन भावना से देखती है।
भारतीय समाज की महिलाएं संसद भवन में बराबरी का हक क्यों नहीं मागती ? आखिर क्यों नहीं मांगती प्रॉपर्टी में अधिकार और पितृसत्ता की गठरी क्यों ढोती रहती है ? अपने बच्चों को धर्म और जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर देखने की बात क्यों नहीं समझ आती है ? क्यों सिर्फ सरकारी नौकरी वाले पति की ही डिमांड करती है ? क्यों श्रृंगार करती है ? शादी करते वक्त लड़कों से बराबरी के अधिकारों की मांग और बराबर जिम्मेदारी संभालने की बात क्यों नहीं करती ? आखिर क्यों भारतीय महिलाएं अपने आप को देवी कहलाना चाहती है ? लड़का और लड़की में क्यों भेदभाव करती है ?
भारतीय महिलाओं को पुरुषों की बराबरी सिर्फ बुरे कार्यों में ही नहीं करनी चाहिए बल्कि अपने अधिकारों को लेने में करनी चाहिए। पुरुष दारू, बीड़ी, गुटखा खाता है इसका यह मतलब नहीं कि महिला बराबरी के चक्कर में दारू, बीड़ी, गुटखा खाना शुरु कर दें। अक्सर हम देखते हैं जिन महिलाओं का तलाक हो जाता है। वह महिलाएं समस्त पुरुष समाज को दोषपूर्ण नजर से देखती है। हमारे गांव में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है रोटी एक हाथ से नहीं बनती है। महिलाओं के लिए आज हमारे देश में अनेकों कानून है। सड़क पर चलती महिला किसी भी पुरुष के ऊपर उत्पीड़न जैसे आरोप लगा सकती है और बहुत सारी महिलाएं ऐसे कानूनों का फायदा उठाती है।
आप सभी ने दहेज एक्ट कानून का नाम जरूर सुना होगा। भले ही कोई लड़का दहेज ना ले, फिर भी उसके ऊपर यह कानून आसानी से लगाया जा सकता है। मुझे महिलाओं के आगे बढ़ने से कोई आपत्ति नहीं है। मगर फेमिनिस्ट के नाम पर वाहवाही और सोशल मीडिया पर लोकप्रिय होने के लिए बिना तर्कों वाली बात कहना गलत है। भारत में अभी लोकतंत्र को आए हुए मात्र 75 साल हुए हैं। अमेरिका हमसे 200 साल पहले आजाद हो गया था। हमारे देश ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के साथ महिला और पुरुष दोनों को मतदान का अधिकार दिया है, जबकि अमेरिका में महिलाओं को अमेरिकी आजादी के बाद कई साल बाद मतदान का अधिकार हासिल हुआ था।
अंतिम में यही कहना चाहूंगा कि भारतीय समाज में सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि कई पुरुष भी ऐसे हैं जिन्हें सेक्स के बारे में सही से जानकारी नहीं है। फेमिनिस्ट मानसिकता वाले लोगों से इतना ही कहूंगा कि वह भारत की तुलना छोटे-छोटे देशों से ना करें। अन्य देश सिर्फ एक या दो धर्म वाले देश है। भारत में कई धर्म है और उसे बड़ी बात कई जातियां हैं। इसलिए आपका फोकस सबसे पहले धर्म, जाति से ऊपर उठने की होनी चाहिए। भारत में आज भी पढ़ी लिखी महिलाएं और लड़कियां अपने अधिकारों की लड़ाई अपने ही घर में नहीं लड़ पाती है। भारतीय महिलाओं को सबसे पहले अपने अधिकारों की लड़ाई लड़नी चाहिए।
लेखक- दीपक कोहली