ऐसी प्रीत कहीं ना पाई
ऐसी प्रीत कहीं ना पाई
रघुकुल रीत सदा चली आई
संस्कारों की बात निभाई
जुग जुग जिये चारों भाई
ऐसी प्रीत कहीं ना पाई।
छल कपट द्वेष ना कोई
भ्राता से बढ़कर काम ना कोई
माता पिता के आशीष से
कृपा चारों धाम की पाई।
सुख सुविधा महलों की छोड़कर
तन से वस्त्र, आभूषण उतार कर
भगवा तन पर लपेटकर
राह वनवास की अपनाई।
पादुका लेकर भरत लौटे
सिंहासन पर फिर वह सजाई
भाई ने ही भाई की राजगद्दी पर
मर्यादा से शासन की नई रीत चलाई।
हरमिंदर कौर ,अमरोहा (उत्तर प्रदेश)