ऐसी चोट खाई दिल ने
बिकने चला हूँ मैं आज सरेबाज़ार
जाने किस सोच में खड़े है ख़रीदार
गुस्ताखी इतनी सी दिल ने कर डाली
शौक ऐ तमाशा में हो यार के दीदार
ढूंढ़ रही नजऱ की कुछ सितारे मिले
पर आबरू हो चली अपनी तार तार
मरने की दुआ मांग लेता आज मैं
नोंच डाले उसने मेरे लबों रुखसार
दिल का हाल दिलरूबा हो तो कहूँ
अश्क़ भी बह चले है अपनी ही धार
अशोक हमदर्दी हो तो आग बुझा दें
इश्क़ आग का दरिया डूब के जाना पार
तन्हा तन्हा चुप बैठे रहने से क्या फायदा
ऐसी चोट खाई दिल ने लिख डाले अशआर
अशोक सपड़ा की क़लम से दिल्ली से