ऐसी कोई लहर नहीं
ऐसी कोई लहर नहीं जो गिरती-उठती न हो,
तूफानों से उलझ-सुलझकर आगे बढ़ती न हो ।
साजन सोने चले गये हैं सौतन की बाँहों में,
चट्टानों सी खड़ी मुसीबत जीवन की राहों में ।
ऐसी कोई निशा नहीं जो रोकर कटती न हो,
तूफानों से उलझ-सुलझकर आगे बढ़ती न हो ।….
काली रातें कभी-कभी फिर अँधियारों में घेरें,
मीठा यादें जभी-तभी आकर अंदर से टेरें ।
ऐसी कोई दिशा नहीं जो आहें भरती न हो,
तूफानों से उलझ-सुलझकर आगे बढ़ती न हो ।….
दीपक चौबे ‘अंजान’