ऐसा ही संसार का, बेटी है दस्तूर
ऐसा ही संसार का, बेटी है दस्तूर
शादी कर माँ-बाप से, जाना पड़ता दूर
बाबुल के आँगन पली, कच्ची कच्ची धूप
आज चली ससुराल में,धर दुल्हन का रूप
आँखें हैं नम देखकर, चहरे का ये नूर
राजकुमारी से मिला, अब रानी का ताज
रखनी अब बेटी तुम्हें, दो-दो कुल की लाज
करना ऐसे काम सब, तुम पर करें गुरूर
दोगी रिश्तों को वहाँ, तुम जितना सम्मान
सबके दिल में ही बना, लोगी तुम स्थान
सबका आशीर्वाद भी, पाओगी भरपूर
तुमसे खो सकता नहीं, मैके का अधिकार
पाओगी हर हाल में, वही पुराना प्यार
छोड़ सभी संकोच को, आना यहाँ जरूर
06-01-2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद