ऐसा वर दो हे वीणावादिनी ©डॉ. अमित कुमार दवे, खड़गदा
ऐसा वर दो हे वीणावादिनी
©डॉ. अमित कुमार दवे, खड़गदा
ऐसा वर दो हे वीणापाणि
जिससे सहज ही ऊजला – सुलझा
फिर जग हो जाए।
दीप उजियारों के स्वतः दीप्त हो जाएँ
अज्ञान जनित अंधेरें सब पट जाएँ।
नित नव पर नव हो निर्माण सृष्टि में..
जिसमें लोककल्याण निहित हो…।
माया-मोह और राग-द्वेष से जग का..
हर जन मन सहज ही मुक्त हो जाए।
प्रकृति का कण कण नव स्फूर्त
स्पन्दन से हर मन को हर्षा जाए…।
ऐसा वर दो हे वीणावादिनी…जिससे…
तेरी कृपा से ही हे माँ ! जीवन हर्षाए
नव ज्ञान-विज्ञान की तू ही सर्जयित्री,
जगत् का निसदिन तू ही दिग्दर्शनकर्त्री
तिमिर तन मन के स्वणतः दूर हो जाएँ
हे वाणी!कुछ भाग जीवन के खिल जाएँ
ऐसा वर दो हे हंसवाहिनी! …जिससे…
जग जन में नव गति- नव ताल ,नव रंग
नव सृजन नव पद का सामर्थ्य भर जाए..
ऐसा वर दो हे श्वेतवासनी ! …जिससे…
सादर प्रस्तुति
©डॉ. अमित कुमार दवे, खड़गदा