ऐसा नहीं कि काबा , शिवाले नहीं रहे
ऐसा नहीं कि काबा , शिवाले नहीं रहे
अब बंदगी के चाहने वाले नहीं रहे
मैं सब को देखती हूँ बराबर निगाह से
मेरी नज़र में गोरे वो काले नहीं रहे
चाहत भरे दिलों को जो मिलने से रोक दें
मज़बूत इतने तो कभी ताले नहीं रहे
हम तो तड़प रहे है फिर प्यास है जगी
वो क्या गये कि प्यार के प्याले नहीं रहे
अब हमसफ़र मिला है कोई लाजवाब सा
अब तो मधु के पैरों में छाले नहीं रहे