ऐसा क्यूँ होता है
ऐसा क्यूँ होता है
जब कभी मन बहुत उदास होता है
मुसाफिर मंज़िलों का थककर
अपने अतीत मेँ झांकता है
वो छोटी छोटी खुशियों
और यादों के गुलदस्ते मेँ
न उम्मीदों का बोझ
न कुछ खोने का डर
वो बेफिक्री की नीँद
अँजाम से बेख़बर
हर पल को जी भर जी लेने का जूनून
माँ की गोद का वो सुकून
आज हसरतों के हुजूम में
सब पीछे छूट गया है
सपनों के शीशमहल में
अपना घर टूट गया है ……
‘नितेश’