ऐसा क्या हुआ
ऐसा क्या हुआ कि आख़िर दुनिया इतनी बदल गई
अच्छाईयाँ हारी बुरी तरह बुराईयाँ आगे निकल गई।
झूठ के फ़लक़-बोस इमारतों में हर कोई रहने लगा
देखो मकाँ-ए-सच को वक़्त की दीमक निगल गई।
आख़िर दम तोड़के है सबको दुनिया छोड़के जाना
कल ख़्वाब में मौत आई थी ये हक़ीक़त उगल गई।