ऐसा कुछ हम कर पाएंगे
ऐसा कुछ हम कर पाएंगे
शायद सच है दुनिया निष्ठुर, अपनी परवाह नहीं किसीको,
पर हम ही सबकी चिंता में कैसे घुट घुट जी पाएंगे…
खुद को ही अब ढंग से पढ़ लें दुनिया रंगों में रंग लें,
अंतर की आवाज को ढक लें होगा जो देखे जाएंगे…
ख़ुद ही खुद से प्यार करेंगे इतर नहीं सोचेंगे ज्यादा,
स्वार्थ भरे दुनिया के सांचे, हम भी उसमें ढल जाएंगे…
बहुत दिनों से सोच रहा हूँ, कर लूँ ख़ुद को अब परिवर्तित,
पर “भारत” विश्वास नहीं है ऐसा कुछ हम कर पाएंगे…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान