ऐसा कभी नही होगा
क्योंकि बीता है वहाँ पर,
कभी मेरा प्यारा बचपन,
और रहा हूँ मैं वहाँ पर,
उस आँगन में सत्रह वर्ष,
वहीं तो सीखा हूँ मैं,
बोलना और चलना,
किताबों को पढ़ना,
और सवाल हल करना,
वहीं तो समझा हूँ मैंने,
समाज और जीवन को,
वहीं से तो पाया है मैंने संस्कार,
प्रेम, सहानुभूति, शर्म, दया जैसे गुण,
वहीं तो है मेरे वो मित्र,
जो गवाह है मेरी भारतीयता के,
और फिर चाहे मैं कहीं भी रहूँ,
किसी भी देश के किसी भी कोने में,
लेकिन पहुंचेगी मेरी राख फिर भी,
उसी मातृभूमि की मिट्टी में,
जिसकी मिट्टी में मैंने जन्म लिया है,
शायद दुःख उसको भी होगा,
क्योंकि उसी से मेरी हस्ती है,
उसी से मेरा वजूद है,
और उसी से मेरी पहचान है,
क्या तोड़ सकूंगा उससे रिश्ता मैं,
ऐसा तो कभी नहीं होगा।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)