ऐतिहासिक किवदंती (मंशाराम चौबे जी की )
नमन माँ शारदे?
विषय :- ऐतिहासिक किवदंती (मंशाराम चौबे जी की कहानी)
[ #दंतकथा/लोककथा ]
यह कहानी मेरे गाँव के प्रणेता मंशाराम चौबे जी की है जो मैने अपने दादा जी के मुखारविंद से सुना है।
मंशाराम जौबे जी बहुत बड़े धर्मात्मा एवं सिद्ध पुरूष थे। आज पश्चिमी चम्पारण जिले का मुख्यालय बेतिया तब बेतिया राज्य हुआ करता था।
वैसे तो बेतिया राज्य का इतिहास बहुत पुराना है।
बेतिया राज्य के दूसरे राजा गज सिंह के कार्यालय में मंशाराम चौबे जी बेतिया राज्य के कुलपुरोहित हुआ करते थे। राजा गज सिंह उन्हें बहुत मान सम्मान दिया करते एवं उनके द्वारा कहे हर शब्द को ब्रह्म वाक्य समझ कर सिरोधार्य करते। मंशाराम चौबे जी ज्योतिष, वेद एवं व्याकरण सहित साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान थे।
एक बार मंशाराम चौबे जी की अस्वस्थता के कारण उनके शिष्य निलाक्ष को राजदरबार में जाकर हाजिरी लगानी पड़ी। उसी दौरान राजा गज सिंह ने एक दिन सुबह सुबह निलाक्ष से पूर्णिमा कब की है बताने को कहा। निलाक्ष पञ्चाङ्ग साथ लेकर गये नहीं थे अतः बिना पञ्चाङ्ग देखे ही आज पूर्णिमा है ऐसा बता दिया। शाम गए जब वह आश्रम मंशाराम जी के पास पहुंचे तब उन्होंने आज राजा गज सिंह के दरबार में घटित एक- एक घटनाक्रम की वृत्तांत मंशाराम जी को बताने लगे जिसमें आज पूर्णिमा हैं यह बात भी उन्होंने मंशाराम जी को बताया।
मंशाराम चौबे जी सर पे हाथ रख बैठ गए और निलाक्ष से कहने लगे।
यह तुमने क्या कर दिया आज तो कृष्ण बदी द्वितीया है और तुमने पूर्णिमा बता दिया।
इतना सुनना था निलाक्ष शर्मिंदा होकर मंशाराम जी से कहने लगे गुरुदेव अब आप ही तारणहार हैं कुछ कीजिये वर्ना अनर्थ हो जायेगा।
कहा जाता है तब मंशाराम चौबे जी ने मंत्रों से अभिमंत्रित कर पीतल की थाली आसमान में उछाल दिया और उस रात पूर्णिमा का चाँद सबको दिखाई दे गया।
लेकिन यह करने के उपरांत दुसरे ही दिन सुबह वे राजा गज सिंह के पास गये और अपने शिष्य द्वारा कये इस गलती के लिए राजा गज सिंह से क्षमायाचना की और फिर उसदिन घटित सम्पूर्ण घटनाक्रम को राजा के समक्ष रखा।
राजा गज सिंह ने मंशाराम चौबे जी से प्रश्न पुछा ; गुरुवर जब आपने अपने शिष्य द्वारा कहे बात को सही साबित कर ही दिया यो फिर क्षमायाचना क्यों?
इसके उत्तर में मंशाराम जी नो जो शब्द कहे उन शब्दों को सुनकर राजा गज सिंह बड़े प्रशन्न हुये और मंशाराम जी को एक गाँव दान दे दिया जिसका नाम तब मुसहरवा था और आज मंशाराम नगर के नाम से जाना जाता है।
राजा से मंशाराम जी ने कहा- राजन आपको मुझ पर मेरे ज्ञान पर , मेरे हर एक शब्द पर आपको खचद से ज्यादा भरोसा है , अगर कल आपको पूर्णिमा का चाँद नहीं दिखता और आज दूज का चाँद देख लेते तो यह भरोसा सदा के लिए टूट जाता जो कदापि उचित नहीं और क्षमा याचना इस लिए कि आप हमारे राजा हैं और राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है अतः गलती करने के क्षमा मांगे बगैर रहना इससे बड़ा पाप इस पृथ्वी पर कोई और नहीं।
आज भी गाँव के मध्य में मंशाराम चौबे जी का मंदिर बना हुआ है।
(पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’)
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मैं {पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’} ईश्वर को साक्षी मानकर यह घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा प्रेषित उपरोक्त रचना मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रेषित है।