ए ! सावन के महीने क्यो मचाता है शोर
ए ! सावन के महीने तू,
क्यो मचाता है इतना शोर।
साजन मेरे साथ नही है,
मै हो रही हूं काफी बोर।।
धीरे धीरे बूंदे पड़ती है,
भिगो रही है मेरा तन।
मै भी करू कुछ ऐसे में,
चाह रहा है ये मेरा मन।।
कुहू कुहू करके कोकिला,
मुझको खूब है चिढ़ाती।
पिया मेरे पास नही है,
जिया मेरा वह जलाती।।
भौंरे भी उड़ उड़ कर वे
फूलो का रसपान करते।
ऐसे में मन भटक रहा है,
पिया होते तो कुछ करते।।
दिखा रही है बिजली भी,
अपना वह भी रोद्र रूप।
साजन मेरे साथ नही है,
कैसे निखारू अपना रूप।।
पल रही है कोख में मेरी,
उनकी प्यार की निशानी।
कैसे बताऊं,कैसे समझाऊं,
हो गई मै उनकी दिवानी।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम